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18:53, 22 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ललित कुमार
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'''अंगीरा कुल मैं पैदा होगे, विश्वकर्मा भगवान,'''
'''शिल्पकारी विद्या सारी का, प्रभु नै पूर्ण ज्ञान || टेक ||'''
तैतीस कोटि देवो के लिए, स्वर्ग लोक रचाया,
नौ खंड चौदा भुवन बणा दिए, जिनकी अदभुत माया,
निराकार-साकार रूप का, ना यो पार किसे नै पाया,
अमरावती की रचना रचदी, गुण देवो नै भी गाया,
न्यूं देव शिल्पी कहलाया, शीश झुकावै शशि और भान ||
शिवजी खातिर देव-शिल्पी नै, स्वर्ण की करी लंका तैयार,
सिंध-उपसिन्ध नै मारण खातिर, घड़दी एक तिलोमना नार,
द्वारकापुरी की रचना रचदी, स्वर्ण के लाये थे द्वार,
विश्वकर्मा सा ना शिल्पी दूजा, कदे भी ना लायी वार,
दधिची अस्थियों के दिए बणा हथियार, इंद्र की बचाली ज्यान ||
सुदामा विप्र का महल चिण्या, ढंग दुनिया तै न्यारा,
पहला मंदिर ठाकुर जी का, फेर कमरे चिण दिए अठारा,
चौखट जंगले शीशम-शाल के, एक झांकीदार चौबारा,
सात धात के रंग-दे रुश्नायी, जणू सूर्य चमकै बारा,
विप्र का दुःख मेट्या सारा, श्री कृष्ण का राख्या मान ||
इंद्रप्रस्थ में धर्मपुत्र का, चिण दिया महल निराला,
नागलोक का भवन बणाया, स्वर्ग सा पैड़काला,
जल ज्यूँ भँवर पड़ै थी, फर्शा मै कर दिया चाला,
आठ पहर जगदीश तंवर, रटै चन्द्रनाथ की माला,
कहै ललित बुवाणी आला, गुरु सतबुद्धि का दे वरदान ||
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