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{{KKRachna
|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''भगवान नै कहै सब न्याकारी, इसकी गैल होरी लाचारी,'''
'''द्यूं कांट या बीमारी, ब्याह करकै परी की गैल मै || टेक ||'''

मेरे भवन मै घोर अँधेरा, इसकै बिन सै सुन्ना डेरा,
मेरा शरीर ना रहया चेत मै, मोती रळरया यो रेत मै,
कचिया दूब या खड़ी खेत मै, चरल्यूं बणकै बैल मै ||

कामदेव नै इसी काटी घेरी, जणू मृग नै मारया केहरी,
मेरे साथ भोगै आनंद सारे, तू बोलैगी बोल प्यारे-प्यारे,
करद्यूंगा तेरे वारे न्यारे, जब चालैगी महल मै ||

मर्द की नजर ना पड़ै नार पै, हो फीका चेहरा ना चमक धार पै,
साहूकार पै कर्जा मिलज्या, गुनाह करे का हर्जा मिलज्या,
तनै महारानी का दर्जा मिलज्या, रहै दासी तेरी टहल मै ||

भजन बंदगी मै टेकी नीत, सतगुरु सेवा सै सच्ची प्रीत,
ललित भक्ति कर गुरु की, जणू विष्णु मै लगी लौ धुरु की,
ययाति ज्यूँ उम्र लेके पुरु की, भोगू सदा सैल मै ||
</poem>
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