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{{KKRachna
|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''तेरे प्यार मै पागल होगी, रोटी तक ना खाई,'''
'''सारी रात रही लौटती, नींद तलक ना आई || टेक ||'''

अग्नि देव सा रूप तेरा, क्यूँ चेहरे पै छाई उदासी,
राणी बणन की नहीं जरूरत, मै रह्ल्यु बणकै दासी,
मैं तेरे प्रेम की घणी प्यासी, क्यूँ इतनी वार लगायी ||

न्हा-धौकै सिंगार करू, पहरु कंठी माला मै,
या कोडिया के भा की दासी, तोल दई लाला मै,
आज रात नृतशाला मै, तू कर लिए मन की चाही ||

पांच पतियों से मनै डर लागै, मेरी करै काटकै ढेरी,
उन पांचो नै दे मार एकबै, फेर बहूँ बणू मै तेरी,
आकाश मै वै काटै घेरी, मेरै सिर चढ़ज्या करड़ाई ||

जब तक जीवै मेरे पति, न्यू रहणा हो डर-डर कै,
जै उननै जाण पाटज्या, मेरा पांडै छूटै मर कै,
ललित कुमार नै भक्ति करकै, करी प्रसन्न दुर्गे माई
</poem>
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