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[[Category:सेदोका]]
<poem>
प्रकृति–सहचरी 1
कौतुकमयी
प्रकृति सहचरी
गोते लगा, फिर
भर ला गगरी।
1 2
दूब–बिछौने
धूप का तकिया ले
जा चुका था सूरज
आँख ही तब खुली !
2 3
शोख़ अदा से
मचलती शाम ने
दोनों होश खोकर
आके झाँका प्रभात।
3 4
मेघ न आए
आषाढ़ बीत गयाय
यक्ष किसे सुनाए
कैसे भेजे सन्देसा?
4 5
विरही यक्ष
बैठा विरहाकुल
मेघदूत आ जाए
तो सन्देस पठाए !
5 6
श्यामपट्ट पे
खडि़या से निकाले
माँ की गोद जा सोया
अंक दमक रहे।
6 7
बड़े उन्मन
सदाबहार वन
वसन्त की दस्तक
रोमांच भरे कौन ?
7 8
बड़े सवेरे
कोकिल कूक उठा
सावन की पुफहार
भिगो, चलती बनी !
8 9
मेघों ने मारी
हँस के पिचकारी
खेतों में उग आई
वर्षा की किलकारी।
9 10
मेघों से घिरी
सूरज की बिन्दिया
जेठ की प्रचण्डता
धूलि में लोट रही !
10 11
वर्षा की साँझ
जुगनू टिमकते
तिमिर–भरा मन
आलोकित करते।
11 12
साँझ फूलती :
लाल–नारंगी मेघों