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11:02, 25 जुलाई 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं
बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहीं
आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं
आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं
सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं