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डर लगता है / शकुन्त माथुर
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11:38, 12 सितम्बर 2018
मेरे छोटे जीवन-भर का
दूजे बर्तन में उँड़ेलते
एक
बूंद
बून्द
भी छिटक न जाए
कहीं बीच में टूट न जाए
छूने भर से जी कँपता है।
अनिल जनविजय
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