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21:16, 18 सितम्बर 2018
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{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=गंग नहौन / निशाकर
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<poem>
बसमे, रेलमे
बाटे-घाटे
सिनेमाघर आ अस्पतालमे भेटल लोक
बिछुड़ि जाइत अछि
छोड़ि जाइत अछि दुखित हमरा
फेर कहाँ भेटता
भेटता आकि नहि
केओ नहि जानैत अछि।
लगैत अछि नहि घुरत
बाटमे छुटि गेल मीता
नहि भेटल ओकर डायरी
टार्च, मोबाइल आ पासपोर्ट
नहि भेटल अछि कोनो खबरि
थानामे रिपोट लिखेलाक बादो
जागल नहि कोनो उमेद।
मेलामे हेरा गेलि छोट बहिन
परदेस कमाइ लेल गेल बड़का भाइ
आ सल्फासक गोटी खा कऽ मुइल पत्नी
मोन पड़ितहिं
आइयो धधकि उठैत अछि करेज।
</poem>