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13:31, 23 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वो बे-हिसी के दिन आये कि कुछ हुआ न लगा
कब उसको भूल गये ये भी तो पता न लगा
बिछड़ते वक़्त दिलासे, न खोखले वादे
वह पहली बार मुझे आज बेवफ़ा न लगा
जहां पे दस्तकें पहचान के जवाब मिले
गुज़र भी ऐसे मकां से हो तो सदा न लगा
यह देखने का सलीक़ा भी किसको आता है
कि उसने देखा मुझे और देखता न लगा
'वसीम' अपने गरेबाँ में झांककर देखा
तो अपने चारों तरफ कोई भी बुरा न लगा।
</poem>