Changes

{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>
हर साल 23 अप्रैल को आरा में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महायोद्धा कुँवर सिंह का विजयोत्सव मनाया जाता है। दानापुर के विद्रोही सिपाहियों ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में आरा को आज़ाद कराया था। 7 दिन तक यहाँ आज़ाद सरकार रही। फिर लड़ाई आगे बढ़ी। दो-दो अँग्रेज़ लेफ्टिनेण्टों को जान गँवानी पड़ी। एक युद्ध छोड़ कर भाग गया। कुँवर सिंह को अंग्रेज़ों ने जगदीशपुर से बेदखल कर दिया, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। कानपुर, रीवा और आजमगढ़ में कम्पनी की सेना से ज़बरदस्त लड़ाई लड़ते हुए, विजय हासिल करते हुए उन्होंने वापस जगदीशपुर पर अधिकार किया और उसके तीन दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। अँग्रेज़ों की गोली जब उनके बाँह में लगी तो उन्होंने तलवार से हाथ के उस हिस्से को काट दिया, इसकी चर्चा खूब होती है। 1857 को लेकर विद्वानों में बड़ी बहसें होती हैं। लेकिन जो लोग आज भी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ भारतीय जनता की एकता, खासकर हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती हैं, जो गाँव-नगर फैल रहे कम्पनियों के जाल से देश को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ते रहे हैं, जो कम्पनियों का हित साधने वाली पार्लियामेण्ट के ख़िलाफ़ देश को जगाने के लिए संघर्ष चला रहे हैं, वे कुँवर सिंह के संघर्ष को किस तरह देखते हैं, इसे रमता जी की इस मशहूर रचना के जरिए समझा जा सकता है। सामन्ती-साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा कुँवर सिंह को अपना नायक बनाने की साजिशों का प्रतिवाद भी है यह गीत। आइए, कारपोरेटपरस्त-साम्राज्यपरस्त राजनीति के ख़िलाफ़, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के ख़िलाफ़ जनता की आज की लड़ाइयों के सन्दर्भ में किसानों के फौजी बेटों द्वारा शुरू उस विद्रोह, जो शीघ्र ही जनविद्रोह बन गया, को याद करें। कुँवर सिंह के संघर्ष ने क्रान्तिकारी-वामपन्थी-जनकवि रमता जी को व्यवहार के धरातल पर किन विचारों को सिखाया, आइए, इस पर विचार करें।
 
झाँझर भारत के नइया खेवनहार कुँवर सिंह
आजादी के सपना के सिरिजनहार कुँवर सिंह
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,667
edits