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06:06, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
माँ की उंगली थाम के चलना सीख लिया है
कहना उसने अम्माबाबा सीख लिया है
उस बच्चे को इतना भोला मत समझो तुम
उसने भी अब तेरा-मेरा सीख लिया है
बच्चों के अब पंख निकल आए हैं देखो
ख़ुद ही चुनना अपना दाना सीख लिया है
अदबी महफ़िल में जाने से हमने भी तो
ग़ुफ्तारी का तौरतरीक़ा सीख लिया है
समझौता हालात से कैसे करते मैंने
हौलेहौले‚ रफ़्तारफ़्ता सीख लिया है
जैसेजैसे यौवन बीता जाता देखो
ख़ामोशी से सब कुछ सहना सीख लिया है
</poem>