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07:29, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
हम उन से जा मिले कभी वो हम से आ मिले
जैसे कोई नदी किसी सागर से जा मिले
ये पेड़ देवदार के जो ध्यान में हैं लीन
ऐ काश इन फ़क़ीरों की हम को दुआ मिले
हम को नहीं है आबो-हवा पश्चिमी पसन्द
हम चाहते हैं पूर्वी आबो-हवा मिले
आमों के पेड़ अब कहीं बाक़ी नहीं रहे
कोयल के कूकने की कहां अब सदा मिले
ये शह्र और उसकी ये ऊंची इमारतें
इस भीड़ में हमें भी कोई रास्ता मिले
वैसे तो बेवफ़ाई है दुनिया का अब चलन
कुछ लोग ज़िन्दगी में हमें वा-वफ़ा मिले
वो आज हम को ऐसे सरे-राह मिल गया
इन्सां के भेस में कोई, जैसे ख़ुदा मिले
तक़दीर लिखने वाले ने तक़दीर क्या लिखी
शामें मिली उदास, सभी दिन उदास मिले
बरसात ये पहाड़ की, ये वादियां, ये पेड़
ऐसा नज़ारा काश हमें बारहा मिले
</poem>