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05:42, 4 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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<poem>
इस तरह कुछ कर दिखाना चाहती थी
इक नदी, उस पार, जाना चाहती थी
प्यार के , मैनें कईं किस्से सुने थे
वो हक़ीक़त कर दिखाना चाहती थी
लाशों पर बुनियाद रक्ख़ी थी इसी पर,
इक इमारत, टूट जाना चाहती थी
इसलिए उस अबला की इज़्ज़त उछाली
सच, अदालत को बताना चाहती थी
मर न जाये बिन तुम्हारे ये ग़ज़ल 'वीर'
ये तुम्हीं से, दिल लगाना चाहती थी
</poem>