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|रचनाकार=सागर साग़र सिद्दीकी|अनुवादक=
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ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम ! ज़रा आँख तो मिला
ख़ाली पड़े हैं जाम! ज़रा आँख तो मिला
ऐ हुस्न-ए-लालाफ़ाम ज़रा कहते हैं आँख तो मिलाआँख से मिलना है बंदगी ख़ाली पड़े हैं जाम दुनिया के छोड़ काम ! ज़रा आँख तो मिला
कहते हैं आँख आँख से मिलना है बंदगीदुनिया क्या वो न आज आएँगे तारों के छोड़ काम साथ साथ तन्हाइयों की शाम ! ज़रा आँख तो मिला
ये जाम, ये सुबू, वो ये तसव्वुर की चांदनीचाँदनी साक़ी कहाँ मदाम मुदाम ! ज़रा आँख तो मिला
आ जायेगा यक़ीन ख़ुदा सबको यकसाक़ी मुझे भी चाहिए इक जाम-बए-यकआरज़ू लेकर ख़ुदा का नाम कितने लगेंगे दाम ! ज़रा आँख तो मिला
हैं राहपामाल हो न जाए सितारों की आबरू ऐ मेरे ख़ुश-ए-कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए'सागर' तेरे ग़ुलाम ख़िराम ! ज़रा आँख तो मिला
हैं राह-ए-कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए
'साग़र' तिरे ग़ुलाम ! ज़रा आँख तो मिला
</poem>