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|रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत
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avita}}
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अड़सठ वर्ष का होने पर सोचता हूँ
अब तक ग़ैर की ज़मीन पर ही जिया
अक्सर डींग भरी और दैन्य भरी
भुला बैठा कि एक दिन मरना भी है
​​
लेकिन कल से फ़र्क दिखेगा साफ़
अपनी रोज़मर्रा जिंदगी जीते हुए अब
अपराजेय आत्मा के लिए दुआ करूँगा
अपनी धरा, व्योम और दिक् में मरूँगा।
 
(ताद्यूश रूजे़विच की कविता से अनुप्रेरित)
 
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