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तुमसे कितनी उम्मीदें थीं / ओम निश्चल
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09:41, 22 अक्टूबर 2018
भीष्म पितामह शरशय्या पर, लेटे, बस, यह साेेच रहे,
उनका क्या
गुुुनाह
गुनाह
था, वे तो, बस, वक़्तों के मारे थे ।
तुमने इनसानों को इनसानों से बेशक बाँट दिया,
अनिल जनविजय
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