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|रचनाकार=मुनीर नियाज़ी
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डर के किसी से छुप जाता है जैसे सौंप साँप खज़ाने में<br>
ज़र के ज़ोर से जिंदा हैं सब ख़ाक के इस वीराने में<br><br>
जैसे रस्म अदा करते हों शहरों की आबादी में<br>
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