{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हारा हृदय उसने स्वयं को इस तरह धड़कता एक कोरे पन्ने के हवाले कर दिया है मानोवह पहले ही मौजूद हो तुम्हारी देहरी पर,
या जैसेकि इसके भीतर मुझे हो उसका इन्तज़ारठीक वैसे ही जैसे दुपहर एक स्त्री के समयढेरों पक्षी आकर तुम्हारे दरवाज़े पर लिए करते हैं प्रहार ।घर बनाया है
धैर्य की उम्र,अपने भीतर के संसार को धड़कता हुआ एक वन ।यहीं अनावृत करता है वहइस संसार में चमकता है जिसके लिए तड़पता था वह अपने लिएरिहाइश बनाता है इसमेंअभी तक जो उसके लिए संसार नहीं है
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विपिन चौधरी'''
</poem>