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दरबारियों की भीड़ है दरबार से चलो
डेरा मेरा उस पार है इस पार से चलो
किसने ग़लत पता दिया हम आ गये यहाँ
दिल बार- बार कह रहा इस द्वार से चलो
 
रोड़े भी रास्ते में हैं, अवरोध भी हैं ख़ूब
मंज़िल भी अभी दूर है रफ़़्तार से चलो
 
मौसम भी कुछ खि़लाफ़ है,दरिया भी जोश पर
ख़तरा भी कम नहीं हुआ मंझधार से चलो
 
यह देश तुम्हारा भी है भूलो न मेरे यार
रक्खो ज़मीं पे पाँव तो अधिकार से चलो
 
लड़ते हुए चलोगे तो क्या लोग कहेंगे
दुनिया के वास्ते ही सही प्यार से चलो
 
मुर्गा न बाँग देगा क्या होगी नहीं सुबह
सूरज उगे, उगे नहीं अँधियार से चलो
</poem>
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