Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरे आँसुओं को समन्दर ने माँगा
ग़रज़ जब पड़ी तो सितमगर ने माँगा
ग़मों का न आहों का मेयार पूछो
चढ़ीं जब घटाये तो अंबर ने माँगा
 
ज़माना नहीं था वो मोबाइलों का
पुराने ख़तों को कबूतर ने माँगा
 
सभी की नज़र थी मेरे आँसुओं पर
बचे थे जो दो बूँद दिलबर ने माँगा
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits