Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
इत्तिफ़ाक़न जो बच निकलता है
वो मुक़द्दर की बात करता है
कितना जाँबाज़ वो दिया होगा
आँधियों से जो जंग लड़ता है
 
अपनी ताक़त पे यक़ीं हो जिसको
वो सिकंदर को याद करता है
 
देखने में भले ही कोमल हो
फूल वो कंटकों में खिलता है
 
वो पसीने की समझता क़ीमत
जेा कड़ी धूप में निकलता है
 
उसको हिंदी से न उर्दू से गिला
आँसुओं के वो हर्फ़ पढ़़ता है
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits