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जब हाल-ए-दिल हम लिखते हैं।बन के मीठी सुवास रहती है।वो हाल-ए-मौसम लिखते हैं।मेरे आसपास रहती है।
अब सारे चारागर मुझकोउसके होंठों में झील है मीठी,रोज़ दवा मेरे होंठों में रम लिखते हैं।प्यास रहती है।
उनके गालों पर मेरे लबआँख में प्यार की दवा डाली,शोलों अब ज़बाँ पर शबनम लिखते हैं।मिठास रहती है।
रिस रिस कर दिल से निकलेंगीमेरी यादों के मैकदे में वो,सोच, उन्हें हरदम लिखते हैं।खो के होश-ओ-हवास रहती है।
हँसने लगती हैं दीवारेंमेरे दिल में न झाँकिये साहिब,बच्चे जब ऊधम लिखते हैं। दुनिया के घायल माथे पर,माँ के लब मरहम लिखते हैं।वो यहाँ बेलिबास रहती है।
</poem>
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