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आसमान के पार स्वर्ग है
सोच गया घर से
जाकर देखा वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
जीवन का पौधा उगता हिमरेखा के नीचे धार प्रेम की जहाँ नदी बन धरती को सींचेआसमान से आम आदमीलगता है चींटी
नभ केवल रंगीन भरम है
सच्चाई मिट्टी
गिर जाता जो अंबर से वो मरता है डर से
अंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओदिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
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