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06:57, 22 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गहरे नीले में थी वह जब उसने
मुझे कविताओं की किताब दी
दूर थी तो नीला शरत् का आकाश था
कविताएँ साझा करते हुए वह
आसमान मेरी ओर आ रही थी
पास उसकी मुस्कान नीले पर बिछ गई
वह मुस्कान मुझे कविताएँ दे रही थी।
</poem>