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<poem>
(1985 का एक कांस्य शिल्प)

चीख़ के साथ
उठे हैं हाथ
ऊपर और ऊपर बढ़ते कि
जा थामें आकाश

जो अभी
बस गिर ही रहा था उस पर।


</poem>
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