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बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव! संध्या की कालिमा उषा के पन्नों पर बिखरा जाता हैयाद हम आगत करेंगे विगत का सद्भाव!
एक झूँक में ही अम्बर हम शिराओं के मैंने दोनों छोर बुहारे, रुधिर तुम-मेरे पौरुष रुधिर के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे; संचार, फिर क्यों नभ प्राण हम-तुम देश के धवल पटल पर कागायह-सा मडरा जाता है? बारदेश अपना प्यार ।प्यार से भर दें सर्जन का बूँद-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? बूँद तलाव!
पलकों के पल्लव पर ढुरकी बूँद कहीं जो पड़ी दिखायीकुछ तपन से, नेह किरन कुछ जलन से परस-परस कर मैंने तो हर बूँद सुखायी; जगमगाती ज्योति, फिरवही तम-फिर क्यों नयनों की सीपी तोम में सागर घहरा जाता है? बारपथ-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? को दिखाती ज्योति ।ज्योति की तुम वर्तिका, हम स्नेह सिंचित स्राव!
उर-मरुथल को स्नेह-सिक्त कर मैंने हरित क्रान्ति सरसायीजायँगे, ले जायँगे भारतपोषण-भरण-सृजन-अनुरंजन करने वाली पौध उगाई; भँवर के पार, द्रुम कोई हरियाते ही क्यों एक बीज पियरा जाता है? चाहिए नन्हे पगों कोबार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है? कुछ दिशा, कुछ प्यार ।हम बने पतवार युग की, तुम हमारी नाव!
कभी सोचता हूँ न करूँ कुछ जो होता है सो होने दूँवक्ष पर हमको सजा लोहम महकते फूल, निर्झरणी फूल से लगने लगेंगेपंथ के ही प्रवाह में जीवन लहरों को खोने दूँ; सब शूल ।पर नेह से 'नीरव' छौने को फिरभरें हम, मातृ-फिर कोई प्रिय हुलरा जाता हैभू के घाव! बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है lनायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!
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