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15:41, 8 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दरवेश भारती
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<poem>
बेवजह जो हताश हो बैठे
बैठे, बैठे हवास खो बैठे
इन विवादों से होगा क्या हासिल
क्यों फटे दूध को बिलो बैठे
जिसकी ता' बीर से थे वाकिफ़ ही
ख़्वाब वह किसलिए सँजो बैठे
चढ़ते सूरज से दोस्ती क्या की
अपने साये से हाथ धो बैठे
दौलतों-ज़र का यूँ नशा छाया
ज़िन्दगी के भी मा' नी खो बैठे
वो हैं कितने अजीब सौदागर
सूद तो सूद मूल खो बैठे
तुम तो 'दरवेश' हो, मगर तुम भी
उफ़! अदावत के बीज नो बैठे
</poem>