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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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मगहिया ही हम मगही बोलबे करम।करमकाहे के लाज भइया काहे के शरम।।शरमसुनबइ मगही बोलबइ मगही।मगहीपढ़बइ मगही लिखबइ मगही।मगहीइहे ईमान हमर ईहे धरम।। धरममगहिया ....हमरा मान चाही स्वाभिमान चाही।चाहीखाली मगधे न´् नञ् सउँसे हिंदुस्तान चाही।चाहीतोड़ देबइ हम एक दिन सबके भरम।। भरम मगहिया ....मनेर के लड्डू सिलाव के खाजा।खाजाचोंदी के लाय आव गाजा।गाजासतधरवा के पानी हे गरमागरम मगहिया ....सजल रहे बजार सदा रहे बहार।बहारई बगिया में सदा कोयल करे पुकार।पुकारमगहिये बन जीयम मगहिये ले मरम।। मरममगहिया .....
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