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08:11, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जो न सुधरें वही हालात थमा देता है
मुझको वह कितने सवालात थमा देता है
वो समझता ही नहीं है मेरी बेचैनी को
आ के उलझे से खयालात थमा देता है
मेरी अंजुरी में दुआएँ उड़ेल कर जैसे
थरथराते हुए जज़्बात थमा देता है
चूम लेता है कभी झुक के मेरी पेशानी
फिर सुलगती हुई एक रात थमा देता है
सूंघ लेता है मेरे मेहंदी लगे हाथों को
साँस की महकती सौगात थमा देता है
</poem>