827 bytes added,
08:12, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दर्द दिया बन कर जलता है
श्वास सदा जीवन छलता है
पीर दुसह जब हो जाती है
जल बन कर हिमगिरि गलता है
मेघ व्यथा के जब घिर आते
आँसू आँखों में पलता है
गैरों ने जो दिए सहे पर
अपनों का धोखा खलता है
वक्त फिसल यदि गया हाथ से
हाथ खड़ा हो कर मलता है
</poem>