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03:46, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
लुटाते रहने से इल्म ओ लियाक़त कम नहीं होती
इज़ाफा और होता है ये दौलत कम नहीं होती
अगर चाहो कभी तो दिल को छू कर आज़मा लेना
ये सोज़े इश्क है इसकी हरारत कम नहीं होती
यही अपनाईत की पायदारी की अलामत है
मुहब्बत बढ़ती है लेकिन शिकायत कम नहीं होती
शबे फुरक़त ख्यालों से तेरे राहत तो मिलती है
सराबों से मगर प्यासे की शिद्दत कम नहीं होती
सलीबो दार तक तेरी तमन्ना ले के आई है
मगर दिल से हमारे तेरी चाहत कम नहीं होती
समेटी हैं दुआऐं माँ की हमने अपने दामन में
जो नेमत हम ने पाई है ये नेमत कम नहीं होती
यहाँ जो चीज़ बढ़ती है वो इक दिन कम भी होती है
निगाहों की सुमन दिल से अदावत कम नहीं होती
</poem>