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05:56, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
सच कह के उसके मुँह पे बस इक बार देखना
फिर उस के बाद खुद को सरे दार देखना
बेशक बढ़ा लो और भी तुम अपने ये सितम
पर ज़ब्त का हमारे भी मेयार देखना
उसमें कमाल ये है उसे देखने के बाद
घटती नहीं है शिद्दते दीदार देखना
तू मुल्क के निज़ाम पे अपनी निगाह रख
फिर बाद में शिवाला ओ मीनार देखना
अपनों ने हर कदम जो दिया है मुझे फरेब
मुझको यही बनाएगा हुशियार देखना
तुम को दिखाई देगी हक़ीक़त की रोशनी
दिल की नजर से तुम पसे कोहसार देखना
</poem>