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01:47, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
जो जाना-पहिचाना होई
तीके साथ जमाना होई
रोटिहाइन पर भटकि रहे हन
दिनु-दिनु भूख पियास सहे हन
तीपर आपनि राह गहे हन
दादा मरिगे हैं अब की बिधि
कफ्फन क्यार ठेकारा होई
केतनी लासै ढोय चुके हन
सबके दुख मा रोय चुके हन
अब तौ सब कुछु खोय चुके हन
अपने अपने कामे मइहा
अब हर एकु देवाना होई
घर बखरी सबते उजरे हन
सूखा मा बेमउत मरे हन
अब तौ दादौ ते बिछुरे हन
हाँथु धरै वाला पीठी पर
आगे कउनु सयाना होई
<poem>