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<poem>
हो के यूँ पत्थर जो हम उनके हवाले जाएँगे
यानि या'नी क्या अब पत्थरों से दिल निका‍ले जाएँगे
इश्क़ की आँधी चली तो आग ज़िस्मों जिस्मों में लगी
अब कहाँ सासों के ये तूफ़ाँ संभाले जाएँगे
अश्क आँखों के न अब हमसे संभाले जाएँगे
दर्द था, गम ग़म था, लहू था इश्क़ की आँखों में तब
प्यार के पंछी न फिर से दिल में पाले जाएँगे।
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