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चान्दनी और बादल / जगदीश गुप्त
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18:22, 30 मार्च 2019
छलकते आलोक से तर हैं;
प्रेत-सी कारी डरारी देह,
हैअभी
है अभी
तक अमृत से गीली ।
सुधा थी या सुरा ?
अनिल जनविजय
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