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प्यार भरे उद्गार / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
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13:55, 21 अप्रैल 2019
मुमकिन है वे और भी पुराने हों
हमारी परिचित भाषा से कहीं ज़्यादा पुराने
लेकिन वे आज भी उतने ही ताज़ा हैं, जितने मक्का के दाने
—
दाने
हालाँकि वे उगे थे पहले-पहल, आज से
दस सहस्त्र साल पहले ।
अनिल जनविजय
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