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स्नान / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
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14:23, 21 अप्रैल 2019
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<poem>
वसन्ती भोर में
सूर्य की सुनहरी रश्मियों में
तुम नहा रही हो
अपने में मगन
सुनहले पाँव ...
मनोहर ग्रीवा — स्कन्ध
कितने प्यारे
कितने मनहर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[सुधीर सक्सेना]]'''
</poem>
अनिल जनविजय
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