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बदलाव - 2 / बाल गंगाधर 'बागी'

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|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
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|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
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<poem>
मेरे बाप के हाथों में हल पकड़ाया गया
मेरे हाथ में हल की जगह हथियार है
तुम्हारे दमन की ईमारतें जलाऊंगा
हमारी जंग से भड़कती ऐसी आग है
माँ के हाथ में कुदाल को थमाया गया
मेरी बहन के हाथों में तलवार है
बुजुर्गों को नंगे पांव चलाया कांटों पर
‘बाग़ी’ वे कांटे बने बरछों की धार हैं
</poem>
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