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|रचनाकार= कुमार मुकुल
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<poem>
फेन
बरहम के मन में
उपजल कामना
सउंसे बरहमांड में
फैल गइल
आउर प्रकृति तत्‍व से
मिल के
सृष्टि रचे के
शुरूआत कइलक ॥5॥

तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी३दुपरि स्विदासी३त्।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥5॥

</poem>
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