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<poem>
बालम मिलबा बिलखती लुआं लगाई लाय
जुलमी महीणौ जेठ रौ तिरिया नै तरसाय

कुबदी आवै काळ में इधक महीणौ जेठ
कीकर दिन दूणा कढै थळ धरती में थेट

परदेसी री प्रीत रौ वाल्हा नह विसवास
काळ बरस रै कारणै अबकौ लगै अकास

सोरठो
आयो जेठ असाढ नह बादल नह बीजळी
गळग्यौ तन रौ गाढ बाटां जो जो बालमा
</poem>
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