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10:38, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नई ज़मीन नया आसमान रख देगा
ख़ुदा परस्त बदलकर जहान रख देगा।
मरे सुभाष नहीं ताइवान में सुनकर
उतार जिस्म से भारत थकान रख देगा।
न था ख़याल कि देगा फ़रेब वो हमको
ज़लील बांट के हिंदोस्तान रख देगा।
किसे पता था शिखंडी के सामने रण में
अजेय भीष्म धनुष और बान रख देगा।
मुझे उसूल बताओ न, किस तरह टूटे
'कलम वरक़ पे नई दास्तान रख देगा'।
हुई न और जो 'विश्वास' चंद दिन बारिश
तड़प के दार पे गर्दन किसान रख देगा।
</poem>