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10:39, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बताओ ज़ुल्म कितने और दिन हम पर घना होगा
पगी मेवा तुम्हारे घर, हमारे घर चना होगा।
जियेंगे शान से हम, कब हमारे दिन ये बदलेंगे
गरीबी मुस्कुराएगी हमारा सर तना होगा।
जुटाना दाल रोटी दिन-ब-दिन मुश्किल हुआ गर यूँ
बग़ावत कर न दें बच्चे ज़रूरी देखना होगा।
घटी महँगाई है, ये झूठ शायद सब समझते हैं
ये गुपचुप पेट पर आरी चलाना रोकना होगा।
जमा धन पर घटाई ब्याज़ दर 'बेजा' जनता को
इलेक्शन में किसे दें वोट, फिर से सोचना होगा।
कमर 'विश्वास' कसकर हम खुला ऐलान करते हैं
गरीबों के लहू से अब नहीं अम्बर सना होगा।
</poem>