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अविश्वसनीय / महेन्द्र भटनागर
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04:28, 17 अगस्त 2008
.... शोकान्त !
मैं ही जीवन की
रस विहीन!
मैं ही भोजक
भोज्य!
आदि ... मध्य... अंत
विषाद सिक्त
बोझिल मंथर गति से विकसित!
पर,
तुम कौन?
रंभा
?
उर्वशी
?
उर्वशी ?
एकरस कथानक में अचानक !
यह सब
'सहसा' है,
अनमिल
अस्वाभाविक है !
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Drmpb