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अनुरागी अधर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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21:32, 13 सितम्बर 2019
गहन निशा छाई
उजेरा करें।
74
कोहरा छँटा
अपने -पराए का
भेद भी जाना।
75
निकष तुम
रिश्तों की उतरी है
झूठी कलई ।
76
वक्त ने कहा-
माना मैं बुरा सही
छली तो छूटे।
</poem>
वीरबाला
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