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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिराज सिंह 'नूर'
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|संग्रह=बादे सबा / हरिराज सिंह 'नूर'
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<poem>
जुगनू चमके, मौसिम बदला, रात हुई है प्यारी,
ऐसे में मेरी भी उनसे, बात हुई है प्यारी।

मेरी आँखों ने देखा है, अद्भुत एक नज़ारा,
पानी-पानी बारिश में वो ज़ात हुई है प्यारी।

ऐसा बदला सारा आलम कुछ न रहा कहने को,
आग लगी तन मन में जिससे घात हुई है प्यारी।

सतरंगी फूलों ने मेरी बग़िया महकाई है,
मौसिम ने अँगड़ाई ली है प्रात हुई है प्यारी।

‘नूर’ नये सूरज की किरनें उजियारा फैलाएँ,
बादे-सबा से मेरी भी तो बात हुई है प्यारी।
</poem>
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