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ये अँधेरे भी रहेंगे / प्रताप नारायण सिंह
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10:27, 7 नवम्बर 2019
तप्त मरुथल में क्षुधा के
चौंधियाती
चिलचिलाती
धूप होगी
तौलती पौरुष मनुज का
मृगतृषा बहु-रूप होगी
घोष "सच हरिनाम" के संग
कारवाँ बढ़ता रहेगा
इन मसानों का धुआँ
यूँ ही सतत चढ़ता रहेगा
पालने नित सोहरों के
साथ डाले भी रहेंगे
</poem>
Pratap Narayan Singh
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