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12:15, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
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|संग्रह=
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<poem>
इन दिनों कविताओं ने
बचा रखी है जिंदगी को
प्रेम को शाश्वत रख रखा है
प्रेम कविताओं ने, नज्मों ने
कॉमरेड इन दिनों जुगत में है
गरीबों, शोषितों के दुखों को
उल्लेखित करने में
बच गया है जीवन का
आत्मिक दर्शन,
मात्र दार्शनिक के गद्य में
परसों गुजर रहा था
शहर बीच वाली
चाय की थड़ी से
तमाम तरह के कवियों
दार्शनिकों, कवियत्रियों
का एक धड़ा संतुलित करने
की जुगत में लगा हुआ था
अपने आंतरिक असहमतियों को
बाह्य सहमतियों से!
</poem>