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04:56, 8 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
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<poem>
लूंकड़ी
घणी चालबाज बजै
कागलो
डेढ़ स्याणों चला'क
पण
आजकल रा कई
मिनख तो है
बां स्यूं च्यार चंदा चढ़ता
बैठ्या रैवे
सुदी गिला'री बण'र
चुपचाप
जिंया दापळी बिल्ली !
मौको मिल्यो
अर झाली झट गिच्ची
मरोड़ी नाड़
बंद विरोध्यां री जाड़ !
लोकतंत्र!
मूंडै मून धारेड़ो
देखतो रैवे
पितामह भीष्म री भांत
संविधान !
तकै निरा सोसका
विदुर दाईं
धृतराष्ट्र रौ राज मोह
हुवै चीर हरण
देश री राज सत्तावां रौ ।।
</poem>
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