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|रचनाकार=कमल सिंह सुल्ताना
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<poem>
हे इंदर कद आसी
सूना होग्या है खेत
बाटाँ जोय रिया है करशा
इण मुरधर सूँ मती रूठ
सदियाँ सूँ रूठौ रियो है
पण आज राजी होजा
मत कर सौतेलो बर्ताव
म्है टाबरियाँ हां थारां
म्हां पर म्हैर कर
थारे बिना कोई सहारा कोनी
जिनावर तो जिनावर
मिनख भी प्यासा मर रिया है
म्है कठै जाऊं
मारग बंद व्हैग्या है
म्हारी ऊजळी खेती रै साथै
खतम व्है ग्यो है
भविष्य म्हारा टाबरियां रो
वा लीकां खींचीज गी है
म्हारा टाबरियाँ रे हाथां ऊपर भी
जिण सूँ म्हैं अळगा राखणा चावूं
एकर सुण ले अर्जी
इतरो भूण्डो मती बण
सुण ले म्हारी अरदासां
एकर आ जा
सुण ले म्हारी विनती
एकर देठाळो दे जा
</poem>
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