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18:51, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:यह आज अकेलेपन पर तो
:मन अकुला-अकुला आता है !
:सुनसान थका देता मन को,
:एकांत शिथिल करता तन को,
:अब और नहीं एकाकीपन
:जीवन के साथ रहे प्रतिक्षण,
::यह उलझा-उलझा-सा यौवन
::अब तो भार बना जाता है !
:कब तक सूनी राह रहेगी ?
:कब तक प्यासी चाह रहेगी ?
:इतनी काली सघन निशा में
:चलना कब तक एक दिशा में ?
::यह रुका हुआ जीवन, उर में
::भाव निराशा के लाता है !
:1949