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करुणा कलित हृदय कभी तुम्हारे जीवन में उठती सूखापन आये विरह व्यथा में करुण हिलोरें। मुझसे कहना मैं सावन बनकर आऊँगा।
पतलीअभी बहुत रस-दुबली बुझती लौ को थोड़ा ज्यों ईंधन मिल जातागंध बहुत यौवन है तुममें, जैसे पलभर घनेअभी तुम्हें क्या कमी प्यार की होने वाली। अभी माँग लो उडुप-घनों से सूर्य निकलकर सम्मुख आता। वैसेकरधनी ला सब देंगें, सोच कनिष्ठ सुखद पल खिल जाती अधरों की छोरें।करुणा कलित हृदय में उठती अभी नहीं है विरह व्यथा में करुण हिलोरें। आँख दो धोने वाली।
अलसायी मगर प्रीत के मधुकर जब ठुकरा जाएँगें- सी मध्यतब तुम कहना मैं साजन बनकर आऊँगा। अभी तुम्हारी चाह बदल सकती है पल-निशा में पल,ज्यों मादक नूपुर का वादनअभी तुम्हारी चालें उर घायल करती हैं। अभी तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करने, जैसे महक रहा हो वन में जाने कितनी ही इच्छाएँ दम भरती हैं। विषधर से लिपटा तरु चन्दन। वैसे प्रियामगर शिला-सा छोड़ तुम्हें जब जग जाएगा-स्मृति है करती शीतलतुमपर मिटने मैं चंदन बनकर आऊँगा। अभी तुम्हें शृंगार, सजल नयन चमकते वस्त्र लुभाते,अभी कहाँ है मोल किसी ढाई अक्षर का। जहाँ शोर की कोरें। चाह प्राण! हावी हो मन पर,करुणा कलित वहाँ कहाँ है मोल हृदय में उठती से उठते स्वर का। मगर शोर से मौन प्रिये! जब भी आएगा- विरह व्यथा में करुण हिलोरें। प्यार भरा तब मैं गुंजन बनकर आऊँगा।
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